ज़िंदगी की तेज़ इतनी अब रवानी हो गई बात जो सोची वो कहने तक पुरानी हो गई आम सी इक बात थी अपनी मोहब्बत भी मगर ये भी जब लोगों तलक पहुँची कहानी हो गई ख़ौफ़ की परछाइयाँ हैं हर दर-ओ-दीवार पर अपने घर पर जाने किस की हुक्मरानी हो गई ज़िंदगी के बाद 'अख़्तर' ज़िंदगी इक और है मौत भी जैसे फ़क़त नक़्ल-ए-मकानी हो गई