ज़िंदगी रास्ते बदल रही है मौत भी अपनी चाल चल रही है या इलाही तअ'ल्लुक़ात की ख़ैर दोस्ती हाशिए पे चल रही है चाँद मसरूफ़ है ख़लाओं में रौशनी ज़ाइक़े बदल रही है हँस के मंज़ूर कर लिया है मगर बात अब भी ज़रा सी खल रही है बे-यक़ीनी की इक रिदा ओढ़े ज़िंदगी साथ साथ चल रही है बद-गुमानी का एहतिमाल तो है शम-ए-उमीद फिर भी जल रही है बंद मुट्ठी में रेत की मानिंद ज़िंदगी ऐ 'क़लक़' फिसल रही है