ज़िंदगानी जब हमें रास आएगी देख लेना मौत भी आ जाएगी वो नज़र जब भी करम फ़रमाएगी लाज़िमन दुनिया हमें अपनाएगी मेरे घर से शाम-ए-ग़म कब जाएगी आज जाएगी तो कल फिर आएगी कौन ज़िंदा रह सकेगा बिन तिरे किस से ये तोहमत उठाई जाएगी कौन जाने क्या हो फिर तौबा का हश्र मय-कदे पर जब घटा घर आएगी एक दिन हम ख़ाक में मिल जाएँगे हर हक़ीक़त दास्ताँ बन जाएगी क्या करूँ उन की नसीहत का गिला दोस्तों से और क्या बन आएगी मैं न कहता था न पूछें मेरा हाल आप को सुन कर हँसी आ जाएगी गर्दिश-ए-दौराँ को समझा दीजिए हम से उलझेगी तो मुँह की खाएगी वो मिटाने को हैं ऐ 'आसी' हमें ये ख़लिश भी एक दिन मिट जाएगी