मख़्फ़ी हैं अभी दिरहम-ओ-दीनार हमारे मिट्टी से निकल आएँगे अश्जार हमारे अल्फ़ाज़ से खींची गई तस्वीर-ए-दो-आलम आवाज़ में रक्खे गए आसार हमारे ज़ंगार किया जाता है आईना-ए-तख़लीक़ और नक़्श चले जाते हैं बेकार हमारे कुछ ज़ख़्म दिखा सकता है ये रौज़न-ए-दीवार कुछ भेद बता सकती है दीवार हमारे क्यूँ चार अनासिर रहें पाबंद-ए-शब-ओ-रोज़ आज़ाद किए जाएँ गिरफ़्तार हमारे क्यूँ शाम से वीरान किया जाता है हम को क्यूँ बंद किए जाते हैं बाज़ार हमारे क्या आप से अब सख़्ती-ए-बे-जा की शिकायत जब आप हुए मालिक-ओ-मुख़्तार हमारे तहसीन-तलब रहते हैं ता-उम्र कि 'आज़र' पैदा ही नहीं होते तरफ़-दार हमारे