ज़िंदगानी सराब की सी तरह By Ghazal << जो नहीं लगती थी कल तक अब ... ये तिरी दुश्नाम के पीछे ह... >> ज़िंदगानी सराब की सी तरह बाद-बंदी हुबाब की सी तरह तुझ उपर ख़ून बे-गुनाहों का चढ़ रहा है शराब की सी तरह कौन चाहेगा घर बसर तुझ को मुझ से ख़ाना-ख़राब की सी तरह टुक ख़बर ले कि तेरे हाथों सीं जल रहा हूँ कबाब की सी तरह Share on: