जैसा भी हो अच्छा या बुरा काट रहे हैं हम लोग मुक़द्दर का लिखा काट रहे हैं कुछ मा'नी तो रखते नहीं इस दौर में रिश्ते बेटे ही यहाँ माँ का गला काट रहे हैं ख़ुशबू का परस्तार उन्हें कैसे कहें हम फूलों से लदी है जो लता काट रहे हैं उस को ये गुमाँ है कि ये तावीज़ अँगूठी ये टोटके ही उस की बला काट रहे हैं 'अगयात' ये जो संत हैं सर्जन से नहीं कम उपदेश की क़ैंची से अना काट रहे हैं