जैसे हों लाशें दफ़्न पुराने खंडर की बुनियाद तले एहसास दबे हैं कितने ही मिरी ना-गुफ़्ता रूदाद तले वो ज़ात तो एक ही ज़ात है न हर लम्हा जिस को ढूँढता है मोमिन नूर-ए-ईमान तले काफ़िर संग-ए-इल्हाद तले इमरोज़-ओ-फ़र्दा करते रहे तुम और यहाँ अहल-ए-हसरत कितने ही कुचले जाते रहे बार-ए-यौम-ए-मीआ'द तले कल तक नारा आज़ादी का जिन के होंटों की ज़ीनत था वो इत्मीनान से बैठे हैं अब ख़ुद दाम-ए-सय्याद तले कर ज़ुल्म बपा लेकिन तारीख़ का ये सच अपने ज़ेहन में रख कितने ही ज़ालिम दफ़्न हुए मज़लूमों की फ़रियाद तले हम ग़र्ब-ज़दा ज़हरीली फ़ज़ा की ज़द में आ ही सकते नहीं हम करते हैं ता'मीर-ए-तमद्दुन तहज़ीब-ए-अज्दाद तले वो अक़्ल-गराँ हम इश्क़-गराँ दोनों में तक़ाबुल कैसा 'नदीम' दोनों ही अज़ल से रहते हैं जब फ़ेहरिस्त-ए-अज़्दाद तले