जैसे इन सज्दों का सर से रिश्ता है बिल्कुल ऐसा मेरा घर से रिश्ता है मेरी आँखें कुछ सोई सी रहती हैं शायद इन का ख़्वाब-नगर से रिश्ता है तुझ को कैसे भूल सकेगा दिल मेरा तेरा मेरा तो इन्द्र से रिश्ता है ऐ शहज़ादी साथ हमारे मत चलना बंजारों का धूप सफ़र से रिश्ता है लौह-ए-फ़लक पर लिक्खी है जिस की इज़्ज़त हम लोगों का उस के दर से रिश्ता है जिस के साए में हम बख़्शे जाएँगे हम लोगों का उस चादर से रिश्ता है वो औरों पर संग उछाले ना-मुम्किन 'माजिद' का शीशे के घर से रिश्ता है