जैसे कश्ती और उस पर बादबाँ फैले हुए मेरे सर पर इस तरह हैं आसमाँ फैले हुए चल रहे हैं धूप से तपती हुई सड़कों पे लोग और साए साएबाँ-दर-साएबाँ फैले हुए देखिए कब तक रहे तन्हा परिंदे की उड़ान हैं समुंदर ही समुंदर बे-कराँ फैले हुए जागती आँखों के ख़्वाब और तेरे बालों के गुलाब मेरे बिस्तर पर हैं अब भी मेरी जाँ फैले हुए सानेहा ये है कि अब तक वाक़िआ कोई नहीं तज़्किरे हैं दास्ताँ-दर-दास्ताँ फैले हुए मैं तो सारी उम्र उस की सम्त ही चलता रहा फ़ासले हैं फिर भी 'ज़ुल्फ़ी' दरमियाँ फैले हुए