ज़ीस्त बे-आसरा न हो जाए दर्द दिल से जुदा न हो जाए लुत्फ़ आता है रंज सहने में मेरे ग़म की दवा न हो जाए आ रही है बहार फूलों पर जोश-ए-वहशत सिवा न हो जाए कह तो दूँ हाल-ए-दिल उसे लेकिन डर है ज़ालिम ख़फ़ा न हो जाए ख़ौफ़ है मुझ से आँख लड़ते ही उन की शोख़ी हया न हो जाए वो गुरेज़ाँ से हैं सितम से 'नरेश' ज़िंदगी बे-मज़ा न हो जाए