ज़ीस्त का खेल रचाने की ज़रूरत क्या है रोते लम्हात सजाने की ज़रूरत क्या है याद जब मुझ को तिरे सारे करम हैं जानाँ फिर ये एहसान जताने की ज़रूरत क्या है इश्क़ से इश्क़ ज़रूरी है मगर जान-ए-अज़ीज़ सब को ये बात बताने की ज़रूरत क्या है एक मौहूम सहारा है गुज़ारे शब के बार इस का भी उठाने की ज़रूरत क्या है मैं गए वक़्त को आवाज़ नहीं दे सकता यूँ भी आवाज़ लगाने की ज़रूरत क्या है फूल जोड़े में सजाने के लिए होते हैं फूल पानी में बहाने की ज़रूरत क्या है उस का चेहरा नज़र आ जाए कि 'आदिल' वो शख़्स जानता भी है ज़माने की ज़रूरत क्या है