महके गेसू आरिज़ नौरस शाम-ए-अवध और सुब्ह-ए-बनारस उन से मिलना मुश्किल अज़-बस चाँदनी रातें दरबाँ चौकस आँसू को दामन में ले लो फूल की ख़ुश्बू जाए रच-बस ख़ामे फ़रिश्तों के लहराएँ अमदन उन के शाने से मस वो जिन के क़ब्ज़े में ख़ुदाई इश्क़ की दुनिया में हैं बेबस इज्ज़-ए-वफ़ा भी जुर्म है शायद शहर-बदर हो जाएँ बेकस 'मानी' दो-आलम सज्दे में पलकें बोझल नज़रें अलकस