ज़िया-ए-रंग भी कुछ तो दोस्ती करो यार बहुत अंधेरा है कमरे में रौशनी करो यार यहाँ फ़राग़तें बार-ए-गराँ हैं रिश्तों पर क़राबतों का तक़ाज़ा है नौकरी करो यार भरम निगाह में रक्खो वक़ार-ए-क़ामत का बड़ा है ज़र्फ़ तो फिर बात भी बड़ी करो यार चहकती शब में ख़मोशी उदास जंगल है लबों के फूल महकने दो बात भी करो यार जहाँ बला-ए-फ़ना घात में खड़ी है वहाँ ये चार साँसें ग़नीमत हैं ज़िंदगी हैं करो यार पयाम लिक्खो मोहब्बत से और भेजो उसे बड़ा हसीन है ये काम इसे अभी करो यार तिलिस्म-ए-फ़िक्र से आगे हैं इशरतें 'आदिल' ये क़ैद-ख़ाना गिरा डालो ज़िंदगी करो यार