मैं अगर रोने लगूँ रुतबा-ए-वाला बढ़ जाए पानी देने से निहाल-ए-क़द-ए-बाला बढ़ जाए जोश-ए-वहशत यही कहता है निहायत कम है दो जहाँ से भी अगर वुसअत-ए-सहरा बढ़ जाए क़ुमरियाँ देख के गुलज़ार में धोका खाएँ तौक़ मिन्नत का जो ऐ सर्व-ए-तमन्ना बढ़ जाए हाथ पर हाथ अगर मार के दौड़ूँ बाहम राह-ए-उल्फ़त में क़दम क़ैस से मेरा बढ़ जाए दाग़ पर दाग़ से ऐ 'बर्क़' मुझे राहत है दर्द कम हो तो शब-ए-हिज्र में ईज़ा बढ़ जाए