जज़्बा-ए-मोहब्बत को तीर-ए-बे-ख़ता पाया मैं ने जब उसे देखा देखता हुआ पाया जानते हो क्या पाया पूछते हो क्या पाया सुब्ह-दम दरीचे में एक ख़त पड़ा पाया देर में पहुँचने पर बहस तो हुई लेकिन उस की बे-क़रारी को हस्ब-ए-मुद्दआ पाया सुब्ह तक मिरे हम-राह आँख भी न झपकाई मैं ने हर सितारे को दर्द-आश्ना पाया गिर्या-ए-जुदाई को सहल जानने वालो दिल से आँख की जानिब ख़ून दौड़ता पाया एहतिमाम-ए-पर्दा ने खोल दीं नई राहें वो जहाँ छुपा जा कर मेरा सामना पाया दिल को मोह लेती है दिल-कशी-ए-नज़्ज़ारा आँख की ख़ताओं में दिल को मुब्तला पाया रंग लाई ना आख़िर तर्क-ए-नाज़-बरदारी हाथ जोड़ कर उस को महव-ए-इल्तिजा पाया 'शाद' ग़ैर-मुमकिन है शिकवा-ए-बुताँ मुझ से मैं ने जिस से उल्फ़त की उस को बा-वफ़ा पाया