जज़्बों से फ़रोज़ाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार क्या हश्र-ब-दामाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार रौशन है अजल और अबद उन की ज़िया से ये रहमत-ए-यज़्दाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार बढ़ने लगी कुछ और वहाँ आतिश-ए-जज़्बात दिल में मेरे मेहमाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार कर दी है लब ओ चश्म ने तस्दीक़ हमारी हुस्न-ए-रुख़-ए-जानाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार चिंगारियाँ उठती हैं तो लगती हैं हमें फूल जादू-ए-बहाराँ हैं दहकते हुए रुख़्सार ज़ुल्फ़ों की हवाएँ तो 'सुहैल' और ग़ज़ब हैं अब आग का तूफ़ाँ हैं दहकते हुए रुख़्सार