जज़ीरे हों कि वो सहरा हों ख़्वाब होना है समुंदरों को किसी दिन सराब होना है सवाल पूछने वालो तुम्हें भी आख़िर-ए-कार रहीन-मिन्नत-ए-बार-ए-जवाब होना है खंडर में बैठ के रोने की ख़ू नहीं जाती तुम्हारी आँख पे शायद अज़ाब होना है वो ज़ुल्मतें जो उजालों के घर में रहती हैं उन्हें भी मिस्ल-ए-सहर बे-नक़ाब होना है वो दिन जो नीली किताबों में बंद है उस को अभी तो मेरे लिए बे-हिजाब होना है अभी तो ख़्वाहिश-ए-बे-दस्त-ओ-पा सलामत है अभी कुछ और ये ख़ाना-ख़राब होना है ये शाख़ शाख़ परिंदे पुकारते हैं 'मतीन' हमें तो शाख़ से गिर कर गुलाब होना है