ज़ख़्म भी ताज़ा था और उस पे हवा भी ताज़ा दिल ने रक्खा था मगर रख़्श-ए-दुआ भी ताज़ा तर-ब-तर है मिरे हाथों में वही जामुनी रंग तुम ने पूछा था कि होती है घटा भी ताज़ा अब तलक है वही जलता हुआ सहरा वही मैं अब तलक है तपिश-ए-शौक़-ए-निदा भी ताज़ा किस बहाने से तुझे भूल रहूँ और ख़ुश हूँ फिर बना लेगा ये दिल एक ख़ुदा भी ताज़ा किस बहाने से मैं जागूँ तुझे ढूँडूँ अब के अब तो इस सहन में ठहरे न हवा भी ताज़ा आइना माँगता रहता है वही अक्स तिरा आँख रखती है तिरा रंग-ए-क़बा भी ताज़ा बस बहुत हौसला रखने की कहानी कह ली रात को फूल मसलती है हवा भी ताज़ा