ज़ख़्म दिल पर लगा नहीं होता हाल ऐसा हुआ नहीं होता ज़िक्र-ए-जानाँ हुआ नहीं होता ज़ख़्म-ए-दिल फिर हरा नहीं होता चैन से ज़िंदगी बसर होती रोग दिल का लगा नहीं होता कुछ न कुछ बात हो गई वर्ना दिलरुबा बेवफ़ा नहीं होता उन्स इख़्लास और वफ़ादारी दिल में शाइ'र के क्या नहीं होता दश्त-ओ-सहरा में गर नहीं फिरते पाँव में आबला नहीं होता तुम से शिकवा है बेवफ़ाई का सब से तो ये गिला नहीं होता ज़ुल्म बढ़ता है रोज़ ज़ालिम का ख़त्म ये सिलसिला नहीं होता चार आँखें नहीं हुई होतीं प्यार का हादिसा नहीं होता याद आती न हम को जानाँ की जाम ग़म का भरा नहीं होता अद्ल के बीच कोई हाइल है क्यों कोई फ़ैसला नहीं होता कहकशाँ चाँद तितलियाँ जुगनू ज़िक्र-ए-जानाँ में क्या नहीं होता रब को बे-शक पुकारते हैं हम जब कोई आसरा नहीं होता हार जाता हूँ मैं अना से 'ज़की' सर ये क्यों मा'रका नहीं होता