ज़ख़्म गहरे थे भला कैसे मुदावा करते कुछ न होता जो अगर ख़ुद का तमाशा करते झूट ही होता मगर ख़्वाब तो होता कोई वो हमारा है सर-ए-राह दिखावा करते बात बे-बात वो रक्खे तो भरम चाहत का हम भी ख़ामोश कोई तर्क-ए-तमन्ना करते मेरी इन आँखों में जुगनू से चमकते हैं कई ख़्वाब आते हैं मिरा नींद में पीछा करते हम से ता-उम्र लिपट जाए तो आराम मिले हम भी हर वक़्त उसे प्यार से देखा करते शेर कहते हैं तो जीने का शुऊ'र आता है गर न कहते तो भला कैसे गुज़ारा करते