ज़ख़्म पर फूँक भी दवा जैसी माँ की हर बात है दुआ जैसी मुद्दतों से सफ़र में हूँ फिर भी इंतिहा क्यों है इब्तिदा जैसी छोटी दुनिया की ये बड़ी ख़बरें तेज़ रफ़्तार हैं हवा जैसी मेरी हमराह बन के चलती हैं मुश्किलें तो हैं दिलरुबा जैसी जब भी भटका तिरा ख़याल आया तेरी यादें हैं नक़्श-ए-पा जैसी उन की ये मेहरबानियाँ हम पर धूप के शहर में घटा जैसी अजनबी शहर ने दिए 'साबिर' दिन कड़ा रात कर्बला जैसी