कराँ कराँ नज़र में मेरी हर तरफ़ सहाब था ज़मीं रही ये तिश्ना-लब कहीं मगर न आब था बदल चुके हैं सब मिरे दिल-ओ-नज़र के ज़ाविए नज़र पड़ी थी उस की इक अजीब इंक़लाब था कि नक़्श दिल पे हो गई है क़ुर्बतों की दास्ताँ महक रही है यासमीं खिला हुआ गुलाब था शदीद अब्र-ओ-बाद थी वो ज़ेहन-ओ-दिल के दरमियाँ बदन-ज़मीन ग़र्क़ थी लहू में इज़्तिराब था नज़र के क़ील-ओ-क़ाल में ये फ़लसफ़े की बात क्या मैं सर-ब-सर सवाल था सरापा वो जवाब था कि गुर्ग में बदल गए वो जितने मेरे यार थे शग़ाल जाँ-निसार थे अजीब मेरा ख़्वाब था ये ज़िंदगी 'नदीम' जी तज़ाद की है दास्ताँ कि मतमह उस का और था जो मेरा इंतिख़ाब था