ज़ख़्म-ए-दिल का हो मुदावा मुझे मंज़ूर नहीं ज़ीस्त का मेरी सहारा है ये नासूर नहीं माँगता हूँ मैं तुझे तुझ से नया है ये सवाल बात रद्द करना गदा की तेरा दस्तूर नहीं आप आ जाएँ दम-ए-नज़अ' मुझे लेने को आप की शान-ए-करम से तो ये कुछ दूर नहीं ऐश के सब ही हैं सामान मयस्सर लेकिन मेरा साक़ी नहीं वो बादा-ए-मख़्मूर नहीं आरज़ू दीद की अर्से से दोबारा है मुझे एक ही बार में जल जाए ये वो तूर नहीं आप का जौर-ओ-सितम और ज़ियादा हो सदा हो इफ़ाक़ा ये 'वफ़ा' को मेरी मंज़ूर नहीं