ज़ख़्म-ए-दिल को तसल्लियाँ दे दो मेरे फूलों को तितलियाँ दे दो सच को तुम क़त्ल कर न पाओगे चाहे जितनी गवाहियाँ दे दो चाँद तारे शफ़क़ धनक आकाश इन दरीचों को कुंजियाँ दे दो ग़ज़लें बे-कैफ़ हो रही हैं मिरी अपने होंटों की सुर्ख़ियाँ दे दो क्या करोगे निशानियाँ रख कर इन हवाओं को छुट्टियाँ दे दो हिचकियाँ रात दर्द तन्हाई आ भी जाओ तसल्लियाँ दे दो ज़ुल्फ़ भी है तुम्हारा 'नासिर' भी जो न हल हों पहेलियाँ दे दो