ज़ख़्म-ए-दिल-गीर को लहू कर के तुझ को ढूँडूँ है आरज़ू कर के एक तेरी तलाश में हम ने ख़ुद को खो डाला कू-ब-कू कर के फिर से जाऊँगा उस की महफ़िल में अपने हर ज़ख़्म को लहू कर के इश्क़ तुझ को कहाँ पे ले आया वो पुकारा है मुझ को तू कर के देख ले ख़ाक हो गया है दिल रात दिन तेरी जुस्तुजू कर के हम ने औराक़-ए-ज़िंदगी 'काशिफ़' ख़ुद ही जोड़े हैं चार-सू कर के