ज़ख़्मों का ब्योपारी है अच्छी साहू-कारी है बोझल बोझल पलकों पर रात अभी तक तारी है बस इक पत्थर झुग्गी का शीश-महल पर भारी है साँप डसे इक उम्र हुई नश्शा अब तक तारी है चंद कहीं ये फैशन है चंद कहीं बद-कारी है अम्न-ए-आलम की ख़ातिर जंग युगों से जारी है मैं ही 'असलम' सच्चा हूँ झूटी दुनिया सारी है