जल भी मिलन के कष्ट का थल भी अमीन था ये भी कभी तिरी मिरी चाहत का सीन था सोचा तो दूर थे कई फ़रसंग उस के अंग देखा तो सामने वो सितारा-जबीन था इक अर्श था झुका हुआ गिरने को सू-ए-फ़र्श इक जिस्म-ए-सद-शिगाफ़ सर-ए-सतह-ए-ज़ीन था फतहों से हम-कनार बयाबाँ में बे-मज़ार तू मा'नी-ए-मुबीन तू तशरीह-ए-दीन था दिन-सिन थे साजना की गिरह में बंधे हुए पहलू में प्रीतमा के ये जीवन रहीन था जब रूह थी बरहना तो फिर जिस्म पर लिबास ज़ाहिर था मैं तो किस लिए पर्दा नशीन था खींचा तो मौज-ए-मिल उसे भींचा तो बर्ग-ए-गुल वो काँच से मतीन किरन से महीन था नीचे गगन के नील-कँवल खेतियों में हल पर्बत पिया के बल मिरा सीना ज़मीन था सदक़ों भरे सबात थे रस्सी में चंद हाथ नेज़े पे एक सर कि सरापा यक़ीन था