जाल में ज़र के अगर मोती का दाना होगा वो न इस दाम में आवेगा जो दाना होगा दाम-ए-ज़ुल्फ़ और जहाँ ख़ाल का दाना होगा फँस ही जावेगा ग़रज़ कैसा ही दाना होगा दिल को हम लाए थे मिज़्गाँ की सफ़ें दिखलाने ये न समझे थे कि तीरों का निशाना होगा आज देख इस ने मिरी चाह की चितवन यारो मुँह से गो कुछ न कहा दिल में तो जाना होगा भर नज़र देखेंगे उस अहद-शिकन की सूरत देखिए कौन सा या-रब वो ज़माना होगा ख़ूँ बहाने का मिरे हश्र में जब होगा बहा देखें क्या उस घड़ी क़ातिल को बहाना होगा वो भी कुछ ऐसी ही कह देगा कि जिस से उस को बात की बात बहाने का बहाना होगा तल्ख़ी-ए-मर्ग जिसे कहते हैं अफ़सोस अफ़सोस एक दिन सब के तईं ज़हर ये खाना होगा देख ले इस चमन-ए-दहर को दिल भर के 'नज़ीर' फिर तिरा काहे को इस बाग़ में आना होगा