शब-ए-व'अदा है तू है और मैं हूँ हुजूम-ए-आरज़ू है और मैं हूँ दिल-ए-बेगाना-ख़ू है और मैं हूँ बग़ल में इक अदू है और मैं हूँ मिटाता ही रहा जिस को मुक़द्दर वो मेरी आरज़ू है और मैं हूँ परेशाँ-ख़ातिरी कहती है अपनी किसी की जुस्तुजू है और मैं हूँ शब-ए-तन्हाई-ए-फ़ुर्क़त में दिल से कुछ उस की गुफ़्तुगू है और मैं हूँ गुलिस्तान-ए-जहाँ है क़ाबिल-ए-सैर तिलिस्म-ए-रंग-ओ-बू है और मैं हूँ निगाह-ए-लुत्फ़-ए-दिलबर का है इज़हार फटे दिल का रफ़ू है और मैं हूँ कहीं छोड़ा अगर क़ातिल का दामन तू फिर मेरा लहू है और मैं हूँ 'जलाल' उस को बनाया उस ने दुश्मन क़यामत में अदू है और मैं हूँ