जलाओ ग़म के दिए प्यार की निगाहों में कि तीरगी है बहुत ज़िंदगी की राहों में सुना कि अब भी सर-ए-शाम वो जलाते हैं उदासियों के दिए मुंतज़िर निगाहों में ग़म-ए-हयात ने दामन पकड़ लिया वर्ना बड़े हसीन बुलावे थे उन निगाहों में कहीं क़रीब कहीं दूर हो गए 'जामी' वो ज़िंदगी की तरह ज़िंदगी की राहों में