कितने ही फ़साने याद आए कितने ही सहारे याद आए तूफ़ान ने बाँहें फैला दीं जिस वक़्त किनारे याद आए दीवार से लग कर सोचों की उम्मीद का सारा दिन गुज़रा जब रात हुई तो हम को भी सब ख़्वाब हमारे याद आए पैमान-ए-वफ़ा के सीने से फिर आज लहू टपका 'जामी' जो राह में थक कर बैठ गए अहबाब वो सारे याद आए