ज़लज़ले सब दिल के अंदर हो गए हादसे रूमान-पर्वर हो गए कश्तियों की क़ीमतें बढ़ने लगीं जितने सहरा थे समुंदर हो गए धूप में पहले पिघल जाते थे लोग अब के क्या गुज़री कि पत्थर हो गए वो निगाहें क्या फिरीं हम से कि हम अपनी ही आँखों में कम-तर हो गए तुम कि हर दिल में तुम्हारा घर हुआ हम कि अपने घर में बे-घर हो गए