ज़लज़लों ने किया यूँ शहर को मिस्मार कि बस चीख़ उठे ख़ौफ़ से बाम-ओ-दर-ओ-दीवार कि बस बारिशें ले गई हैं सारा असासा मेरा मेहरबाँ इतना हुआ अब्र-ए-गुहर-बार कि बस अब किसी दिल में नहीं मिम्बर-ओ-मेहराब का ख़ब्त ऐसे बदनाम हुए जुब्बा-ओ-दस्तार कि बस इतनी मय भी न मिली होंट ज़रा तर करते अपनी तक़दीर पे वो रोए हैं मय-ख़्वार कि बस शहर-ए-तख़रीब में क्या ख़्वाहिश ता'मीर करें ऐसे ताराज हुए कूचा-ओ-बाज़ार कि बस अब के ख़ुर्शीद ने बरसाई है वो तारीकी सर-बरहना निकल आई है शब-ए-तार कि बस ज़ुल्म वो ज़ुल्म अजल ढूँढती फिरती है पनह सब्र वो सब्र कि शर्मिंदा है आज़ार कि बस यार-ओ-अग़्यार ने देखा है तअ'ज्जुब से बहुत 'मोहसिन'-एहसाँ पे थी वो तीरों की बौछार कि बस