जलता है जिगर तो चश्म नम है क्या जाने ये किस का मुझ को ग़म है जावे तो कनिश्त-एदिल में हो कर तो काबे की राह दो क़दम है देखे है वो धुकधुकी में जब से तब से मिरा धुकधुके में दम है तस्वीर तू उस की ज़ुल्फ़ की देख नक़्क़ाश ये चीन का क़लम है गर दीदा-ए-ग़ौर से तू देखे हस्ती जिसे कहते हैं अदम है इतने जो हुए हैं हम बद-अहवाल ये हज़रत-ए-इश्क़ का करम है हर-चंद उस की है हर अदा शोख़ मंज़ूर अपना जो इक सनम है पर दाँतों तले ज़बाँ दबाना बेदाद है क़हर है सितम है समझो न फ़क़ीर 'मुसहफ़ी' को ये वक़्त का अपने मुहतशम है