तेरे अबरू की अजब बैत है हाली ऐ शोख़ जिस में है मतलब-ए-दीवान हिलाली ऐ शोख़ गौहर-ए-अश्क कूँ है हल्क़ा-ब-गोशी का ख़याल गर लगे हात तिरे कान की बाली ऐ शोख़ रूह-ए-फ़रहाद भी ख़ुश हो के मिठाई बाँटे गर सुने तुझ लब-ए-शीरीं सती गाली ऐ शोख़ जब सें देखी है ख़त-ए-सब्ज़ में तेरे लब-ए-सुर्ख़ तब सें सब्ज़े में छुपी पान की लाली ऐ शोख़ शहर में उल्फ़त-ए-सहरा है मुझे दामन-गीर क्या क़यामत हैं तिरी चश्म-ए-ग़ज़ाली ऐ शोख़ मसनद-ए-मतलब-ए-दिल पर मिरे कर मोहर-ए-क़ुबूल मंसब-ए-लुत्फ़ का मंगता हूँ बहाली ऐ शोख़ बस कि तस्वीर तिरी नक़्श किया दिल में 'सिराज' पर्दा-ए-चश्म है फ़ानूस-ए-ख़याली ऐ शोख़