जलती रहना शम-ए-हयात फिर न मिलेगी ऐसी रात कह तो गई वो नीची निगाह राज़ ही रखना राज़-ए-हयात हम कुछ समझे वो कुछ और ख़ामोशी में बढ़ गई बात किस को सुनाएँ पूछे कौन आह-ए-नीम-शबी की बात रूह के मुंकिर जिस्म-परस्त सहल नहीं इरफ़ान-ए-हयात उफ़ ये दस्त-ए-तलब और हम सब है वक़्त पड़े की बात दामन से अब मुँह न छुपा जा भी चुकी अश्कों की बरात जिस ने न पाई अपनी पनाह क्या देगा औरों को नजात शेर वही है जिस में 'सिराज' ख़ुद तड़पे रूह-ए-जज़्बात