जल्वा-ए-मेहर-ओ-माह क्या शाम-ओ-सहर में कुछ नहीं अब तिरी याद के सिवा मेरी नज़र में कुछ नहीं पहली निगाह इश्क़ की करनी है सेहर-ए-हुस्न पर एक ही बार देखिए बार-ए-दिगर में कुछ नहीं अब मैं हूँ उस मक़ाम पर रंज-ओ-ख़ुशी जहाँ हैं एक शाम-ए-अलम का ज़िक्र क्या नूर-ए-सहर में कुछ नहीं तू ही नहीं जो हम-कनार फूल कहाँ कहाँ बहार अब ये जहान-ए-लाला-ज़ार मेरी नज़र में कुछ नहीं ये तिरा हुस्न-ए-आरिज़ी ये तिरी शान-ए-बे-रुख़ी तेरी नज़र में कुछ सही मेरी नज़र में कुछ नहीं