जल्वा-ए-दीदार तो इक बात है लन-तरानी आशिक़ों की घात है आश्ना जिस का है तू आराम-ए-जाँ वो जहाँ में मोरिद-ए-आफ़ात है बोसा-ए-रुख़ दे ज़कात-ए-हुस्न है ऐ हसीं ये दाख़िल-ए-हस्नात है आइना-ख़ाना बना है मेरा दिल देख ले क्या ख़ुशनुमा मिरआत है जान-ओ-दिल था नज़्र तेरी कर चुका तेरे आशिक़ की यही औक़ात है गिर्या-ए-उश्शाक़ पर हैं ख़ंदा-ज़न कहते हैं क्या ख़ुशनुमा बरसात है हिज्र की शब है हुजूम-ए-सद-बला मैं हूँ तन्हा और ख़ुदा की ज़ात है ख़ात्मा-बिल-ख़ैर हो जाए कहीं शर्म अपनी अब ख़ुदा के हाथ है ज़िंदगी है चार दिन की चाँदनी फिर वही 'साक़ी' अँधेरी रात है