जल्वा-ए-हुस्न को महरूम-ए-तमाशाई कर बे-नियाज़ी सिफ़त-ए-लाला-ए-सहराई कर हाँ बड़े शौक़ से शमशीर के एजाज़ दिखा हाँ बड़े शौक़ से दावा-ए-मसीहाई कर मैं तो मजबूर हूँ आदत से कहे जाऊँगा तू कोई बात न सुन और न पज़ीराई कर अपने बीमार की ये आख़िरी उम्मीद भी देख मलक-उल-मौत से कहता है मसीहाई कर मुझ को ले जा के दर-ए-यार पे क़ासिद ने कहा ख़ामा-फ़रसाई न कर नासिया-फ़रसाई कर हम तिरी सूरत-ए-इंकार को पहचानते हैं वो तबस्सुम तू शरीक-ए-लब-ए-गोयाई कर