जवानी के तराने गा रहा हूँ दबी चिंगारियाँ सुलगा रहा हूँ मिरी बज़्म-ए-वफ़ा से जाने वालो ठहर जाओ कि मैं भी आ रहा हूँ बुतों को क़ौल देता हूँ वफ़ा का क़सम अपने ख़ुदा की खा रहा हूँ वफ़ा का लाज़मी था ये नतीजा सज़ा अपने किए की पा रहा हूँ ख़ुदा-लगती कहो बुत-ख़ाने वालो तुम्हारे साथ में कैसा रहा हूँ ज़हे वो गोशा-ए-राहत कि जिस में हुजूम-ए-रंज ले कर जा रहा हूँ चराग़-ए-ख़ाना-ए-दर्वेश हूँ मैं इधर जलता उधर बुझता रहा हूँ नए काबे की बुनियादों से पूछो पुराने बुत-कदे क्यूँ ढा रहा हूँ नहीं काँटे भी क्या उजड़े चमन में कोई रोके मुझे मैं जा रहा हूँ हुई जाती है क्यूँ बेताब मंज़िल मुसलसल चल रहा हूँ आ रहा हूँ 'हफ़ीज़' अपने पराए बन रहे हैं कि मैं दिल को ज़बाँ पे ला रहा हूँ