जल्वा-फ़रमा देर तक दिल-बर रहा अपनी कह ली सब ने मैं शश्दर रहा जिस्म बे-हिस बे-शिकन बिस्तर रहा मैं नए अंदाज़ से मुज़्तर रहा मैं ख़राब-ए-बाद-ओ-साग़र रहा दिल फ़िदा-ए-साक़ी-ए-कौसर रहा मैं रहा तो बाग़-ए-हस्ती में मगर बे-नवा बे-आशियाँ बे-पर रहा सब चमन वालों ने तो लूटी बहार और मुझे सय्याद ही का डर रहा कोई समझा रिंद कोई मुत्तक़ी लब पे तौबा हाथ में साग़र रहा थम रहे आँसू रही दिल में जलन नम रहीं आँखें कलेजा तर रहा उम्र भर फिरता रहा मैं दर-ब-दर मर के भी चर्चा मिरा घर घर रहा सैकड़ों फ़िक्रें हैं तुम को आक़िलो तुम से तो 'मज्ज़ूब' ही बेहतर रहा