न देखूँगा हसीनों को अरे तौबा न देखूँगा तक़ाज़ा लाख तू कर ऐ दिल-ए-शैदा न देखूँगा करूँ नासेह मैं क्यूँकर हाए ये वादा न देखूँगा नज़र पड़ जाएगी ख़ुद ही जो दानिस्ता न देखूँगा निगाह-ए-नाज़ को तेरी मैं शर्मिंदा न देखूँगा हटाए लेता हूँ अपनी नज़र अच्छा न देखूँगा वो कहते हैं न समझूँगा तुझे 'मज्ज़ूब' मैं आशिक़ कि जब तक कूचा ओ बाज़ार में रुस्वा न देखूँगा बला से मैं अगर रो रो के बीनाई भी खो बैठूँ करूँगा क्या इन आँखों को जो वो जल्वा न देखूँगा बला से मेरे दिल पर मेरी जाँ कुछ ही गुज़र जाए मैं तेरी ख़ातिर-ए-नाज़ुक को आज़ुर्दा न देखूँगा उठाऊँगा न ज़ानू से मैं हरगिज़ अपना सर हमदम अरे मैं अपनी आँखों से उन्हें जाता न देखूँगा हसीनों से वही फिर हज़रत-ए-दिल दीदा-बाज़ी है अभी तो कर रहे थे आप ये दावा न देखूँगा ज़रा ऐ नासेह-ए-फ़र्ज़ाना चल कर सुन तो दो बातें न होगा फिर भी तू 'मज्ज़ूब' का दीवाना देखूँगा