जल्वा-गर आज है वो मेहर-ए-मुनव्वर की तरह बख़्त अपना भी चमकता है सिकंदर की तरह उस की रफ़्तार है बस मौजा-ए-कौसर की तरह गुफ़्तुगू में है खनक शीशा-ओ-साग़र की तरह किस को यारा-ए-सुख़न है उसे हम भी देखें वो मुख़ातब है मगर दावर-ए-महशर की तरह क्या ख़बर लोग किसे अपना ख़ुदा कह देंगे लाख बुत हम ने तराशे तो हैं आज़र की तरह किस पे इस दौर-ए-पुर-आशोब में तकिया कीजे राहज़न भी तो नज़र आते हैं रहबर की तरह मंज़िल-ए-फ़क़्र-ओ-ग़िना क्या है ये हम से पूछो ज़िंदगी हम ने गुज़ारी है क़लंदर की तरह कितने तूफ़ान हैं पिन्हाँ कोई देखे तो 'हबाब' मौजज़न है दिल-ए-शाइ'र भी समुंदर की तरह