मोहब्बत मेहरबाँ तेरी न मेरी मुकम्मल दास्ताँ तेरी न मेरी गँवा दी उम्र जिस को जीतने में वो दुनिया मेरी जाँ तेरी न मेरी ख़ुदा जाने है किस का दर्द कितना ये साँझी सिसकियाँ तेरी न मेरी हैं ना-इंसाफ़ियाँ हर सम्त लेकिन खुली अब तक ज़बाँ तेरी न मेरी बचा है और न कोई बच सकेगा ग़मों की आँधियाँ तेरी न मेरी तू जितना भी उन्हें अपना समझ ले सियासी हस्तियाँ तेरी न मेरी सहाफ़त को ख़रीदा अहल-ए-ज़र ने रही अब सुर्ख़ियाँ तेरी न मेरी अदाकारी रिया-कारी दिखावा हक़ीक़त की ज़बाँ तेरी न मेरी