जी में है तोड़ दें सुबू और गिरा दें जाम ये तू ही नहीं तो किस लिए आई है आज शाम ये जाम न गिन पिलाए जा होश में जब तलक हैं हम तुझ को न भाए साक़िया मोहतसिबों का काम ये वक़्त-ए-विदा' साक़िया रिंद तिरे करें दु'आ ख़ुम ये सदा भरे रहें दौर चलें मुदाम ये मैं ने इसे जिया भी है हर्फ़ है जो रक़म किया ज़ीस्त से मेरी है जुड़ा मेरा है जो कलाम ये फ़िक्र-ए-सुख़न से क्या मिला बोल किसी को ऐ 'सदा' फ़िक्र-ए-म'आश कर ज़रा छोड़ के अब तू काम ये