ज़माना है कि मुझे रोज़ शाम डसता है मगर ये दिल है कि पहले से और हँसता है तू ये बता उन्हें किस ने बना दिया ऐसा कि तेरे सामने हर कोई दस्त-बस्ता है मैं उस को छोड़ के अब जाऊँ तो कहाँ जाऊँ यही तो एक मेरी ज़िंदगी का रस्ता है अजीब बात है लगता है यूँ हर इक चेहरा कि बोलने के लिए जिस तरह तरसता है जो सुख का साँस मिले उम्र भर के बदले भी तू मेरी मान कि सौदा ये फिर भी सस्ता है सब एक दूसरे को अब तो यूँ भी जानते हैं कि एक एक का अंदर से हाल ख़स्ता है शिकायत और तो कुछ भी नहीं इन आँखों से ज़रा सी बात पे पानी बहुत बरसता है कराहता भी है हर आन जो भी ज़िंदा है और अपने गिर्द शिकंजा भी ख़ुद ही कसता है हमारा कल कोई पाताल में रख आया है समुंदरों में से कहते हैं कोई रस्ता है किसी तरह भी तो समझा सके न हम उस को ज़माने से ये कहो ख़ुद पे 'तल्ख़' हँसता है