ज़माना मेरी तबाही पे जो उदास हुआ मैं अपने आप से ऐ दोस्त रू-शनास हुआ मिरे ख़ुलूस के फूलों से जो उड़ी ख़ुशबू तुम्हारे तंज़ का मौसम भी बद-हवास हुआ जमाल-ए-सेहन-ए-गुलिस्ताँ हमीं से क़ाएम है हमारे ख़ून से हर फूल ख़ुश-लिबास हुआ अकेला पेड़ ही मौसम का वार सहता रहा शिकस्ता-बर्ग भी कोई न आस-पास हुआ कभी जो टूटा सितारा किसी को आया नज़र तो बज़्म-ए-ग़ैर में मेरा ही ज़िक्र-ए-ख़ास हुआ सफ़ीर-ए-सुब्ह-ए-दरख़्शाँ चला जो मशरिक़ से दयार-ए-शब का शहंशाह बद-हवास हुआ