ज़माने तेरी ख़ातिर देख ये क्या कर लिया मैं ने कि वो बे-पर्दा आए और पर्दा कर लिया मैं ने निगाहों से किसी की दिल का सौदा कर लिया मैं ने ग़मों की भीड़ में भी ख़ुद को तन्हा कर लिया मैं ने कोई देखे मिरी दीवानगी-ए-शौक़ का आलम कि उन को सामने बिठला के सज्दा कर लिया मैं ने नुमाइश से भी ज़ख़्म-ए-दिल की हासिल कुछ नहीं 'नग़मी' ख़ुदाई में बुतों की ख़ुद को रुस्वा कर लिया मैं नै