रात आएगी तो घर जाएँगे लाख सिमटे हों बिखर जाएँगे घर भी है कोह-ए-निदा ही जैसा दिल न चाहेगा मगर जाएँगे पास आ जाएँगे हँसते हुए फूल थक के जब शाम को घर जाएँगे अपनी परछाईं हो कि अपना गुनाह साथ जाएँगे जिधर जाएँगे हम 'किरन' रौशनी देने के लिए तीरगी होगी जिधर जाएँगे