शो'ला-ए-आह ने सीखा है जलाना दिल का नहीं मिलता है जो पहलू में ठिकाना दिल का शोख़ियाँ आएँगी बढ़ने दो अभी सिन उन का ज़ुल्फ़-ए-पुर-पेच सिखा देगी फँसाना दिल का नए अंदाज़ से लेते हैं वो दिल आशिक़ का रविश-ए-नाज़ से सीखा है चुराना दिल का सूरत-ए-बर्ग-ए-हिना किस ने बनाया तुम को पेश कर पाए निगारीं में लगाना दिल का क्या मुझे दश्त-नवर्दी का मज़ा देता है जुस्तुजू में तिरी यूँ ख़ाक उड़ाना दिल का क्या ख़बर थी वो पए सैर इधर आएगा सीखता पर्दा-ए-पहलू में छुपाना दिल का उन के कूचे में बपा फ़ित्ना-ए-महशर न करे शब-ए-तारीक में क्या शोर मचाना दिल का तूर-ए-उलफ़त पे चलो ता मैं दिखाऊँ तुम को हो के बेहोश कभी होश में आना दिल का शुक्र कर शुक्र 'जमीला' कि ज़हे तेरा नसीब हो गया कूचा-ए-जीलाँ में ठिकाना दिल का